Menu
blogid : 3358 postid : 142

निर्विरोध निर्वाचन पर बधाई हो भाभी जी!!!

मुद्दे की बात, कुमारेन्द्र के साथ
मुद्दे की बात, कुमारेन्द्र के साथ
  • 547 Posts
  • 1118 Comments

तमाम सारे विपक्षी दलों की नपुंसक सक्रियता के कारण उत्तर प्रदेश के राजनैतिक हिस्से में तथा मुलायम सिंह परिवार के हिस्से में एक और गौरव शामिल हो गया। डिम्पल यादव कन्नौज से निर्विरोध सांसद निर्वाचित हुईं और इस तरह वे प्रदेश की तीसरी सांसद हैं जो संसद के लिए निर्विरोध चुनी गई हैं। अभी कुछ माह पूर्व उनके पति अखिलेश यादव ने भी प्रदेश के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री होने का गौरव प्राप्त किया था। वर्तमान सांसद का निर्विरोध चुना जाना लोकतान्त्रिक व्यवस्था में खुशी की बात है अथवा शर्म की इसे ठीक-ठीक समझा नहीं जा पा रहा है।
.
समाजवादी पार्टी के नेताओं, कार्यकर्ताओं का प्रसन्न होना तो लाजिमी है किन्तु अकारण किसी भी राजनैतिक दल की ओर से डिम्पल के खिलाफ अपना प्रत्याशी खड़ा न करना राजनैतिक विद्रूपता ही कही जा सकती है। मात्र यह सोचकर कि सत्ताधारी दल का प्रत्याशी है, मुख्यमंत्री की पत्नी है तो उसे चुनाव जीतना ही जीतना है, अपना प्रत्याशी न उतारना समस्त राजनैतिक दलों का कायराना कदम है। यह लोकतन्त्र को कदापि सशक्त नहीं बनाता, हां, तमाम सारे दलों के स्वार्थों को अवश्य ही मजबूत करता होगा। ऐसा नहीं है कि इससे पहले सांसदों का निर्विरोध निर्वाचन हुआ नहीं है। डिम्पल के पूर्व 43 सांसद ऐसे रहे हैं जो निर्विरोध रूप से निर्वाचित होकर सदन में पहुंचे हैं किन्तु इस निर्वाचन के वर्तमान संदर्भों में मायने बदल जाते हैं। ज्ञात तथ्यों के आधार पर अंतिम निर्विरोध सांसद 1989 में चुना गया था अर्थात उस दौर में, जिस दौर से राजनैतिक मूल्यों में क्षरण होना प्रारम्भ हुआ था। सभी को भली-भांति ज्ञात होगा कि यही वह दौर है जिसने छोटे-छोटे दलों को, क्षेत्रीय दलों को, स्वार्थपरक राजनीति को, जुगाड़ की राजनीति को लोकतान्त्रिक व्यवस्था में स्थान देना प्रारम्भ किया था।
.
बहरहाल, डिम्पल का निर्विरोध चयन लोकतान्त्रिक व्यवस्था पर तो प्रश्न उठाता ही है साथ ही राजनैतिक दलों की मंशा को भी उजागर करता है। विगत निर्विरोध निर्वाचन की परम्परा को ध्यान में रखते हुए हमें अपने आपसे ही सवाल करना चाहिए कि ऐसा कौन सा महान व्यक्तित्व है वर्तमान निर्विरोध चयनित सांसद में कि उसके विरुद्ध एक भी दल अपने प्रत्याशी उतारने को राजी नहीं हुआ? ऐसे कौन से जनोपयोगी कार्य किये हैं श्रीमती यादव ने कि उनको निर्विरोध निर्वाचित होते देखकर एक आम मतदाता को अपने लोकतन्त्र पर गर्व महसूस हो? राजनीतिक क्षेत्र में ऐसी कितनी लम्बी अवधि उनके द्वारा व्यतीत कर ली गई कि बिना चुनावी प्रतिद्वंद्विता के ही उनको सदन में पहुंचा दिया गया? पूर्व मुख्यमंत्री, पूर्व रक्षामंत्री की पुत्रवधू, वर्तमान मुख्यमंत्री की पत्नी होना यदि वास्तविक योग्यता है तो वे इसमें पूर्णतया खरी उतरती हैं और ऐसे में निर्विरोध निर्वाचित होना उनका अधिकार है।
.
बहुत पुरानी घटना नहीं है जबकि सोनिया गांधी के बेल्लारी से चुनाव लड़ने पर भाजपा के द्वारा सुषमा स्वराज को वहां से चुनाव लड़वाया गया था, हेमवतीनन्दन बहुगुणा जैसे व्यक्ति के विरुद्ध फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन को उतारा गया था, ग्वालियर से अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ एकदम अंतिम समय में माधवराव सिन्धिया को खड़ा कर दिया गया था। इनके अतिरिक्त अनेक उदाहरण रहे हैं जबकि वाकई जमीनी रूप से कार्य करने वाले, जनलोकप्रिय नेताओं के खिलाफ प्रत्याशियों को उतारा जाता रहा है। इससे स्पष्ट होता है कि भले ही किसी राजनेता ने जनता के लिए कितना भी जमीनी कार्य क्यों न किया हो किन्तु उसे भी चुनावी प्रतिद्वंद्विता का सामना करना पड़ा है।
.
कुछ भी हो, डिम्पल यादव ने कन्नौज से निर्विरोध निर्वाचित होकर भारतीय राजनैतिक, लोकतान्त्रिक इतिहास में अपना नाम लिखवा लिया है। सही क्या है, गलत क्या है अब इसका आकलन ही किया जाता है, सही को प्रोत्साहित करने वालों की, गलत को नकारने वालों की जबरदस्त कमी है। ऐसे में सिर्फ विरोध करने के नाम पर विरोध करने का कोई अर्थ नहीं रह जाता है, विरोध का मन्तव्य उस समय स्पष्ट और चरितार्थ होता है जबकि उसके परिणाम सामने आने लगते हैं। इस निर्वाचन पर किसी तरह का कोई विरोध मायने भी नहीं रखता है क्योंकि सभी कुछ संवैधानिक रूप से हुआ है, लोकतान्त्रिक प्रक्रिया के अन्तर्गत ही हुआ है। तो फिर आइये अपने दिमाग पर, दिल पर बेवजह को बोझ लादे बिना हम भी कह ही देते हैं ‘निर्विरोध चुने जाने पर बधाई हो डिम्पल भाभी जी!’
.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh